राज्याभिषेक / शेखर सिंह मंगलम
मुक्के-मुक्कियाँ ताक रहे
सीलन भी
पेट भर चाट रही
जर्जर बूढी खंडहर गिरती
ये दीवारें
सियासी वादों से
ओनची हुई
इनका निगम उद्धार नहीं
इसके टूटे दाँतों का
आरसीटी कर
नकली दाँत लगा रहा
दीवारें नंगी महज़ शरीर पर इसके
गोल-गोल फटी बंडी और
जाँघिया में ढँक कर
अंतरंगता नंगी नाच कर रही
कूँची क़लम से
नौकरशाही ढाँक रही, शायद
मेहमान आने वाले हैं
पर्दों पर पर्दा लगाया जा रहा
नाले-नालियों को भी
सोहबला बनाया जा रहा
लगता मानो!
बूढ़ी बेवा औरत की शादी करानी है
देखवार आने वाले हैं मगर
ये तो वही हत्यारे हैं जिन्होंने
बूढ़ी औरत को सुहागन से बेवा बनाया
अब इसके सूखे होंठों और
बेवाय, बिबाई फटे पैरों में
ना जाने क्यों गुलाबी लाली लगा रहे
साज़िश है ये
हाँ ! चांडालों को सियासी पंडाल में
विकास की दुदुंभी बजाना है
वज़ह कि ये छिपा रहे, गंदगी में लिपटा
विकास-कुपोषित शिशु
बुड्ढ़ी घोड़ी को लाल लगाम लगा
बुद्धि-भ्रम की चादर से
इंद्रधनुषी ठप्पा मार
विश्वामित्र से मेनका का
गर्भाधान कराने की
गहरी साज़िश रच रहे
दूसरे ठप्पे की तैयारी में जुटे
अपने पक्ष के हेंगे पर खड़े होकर
हुमच रहे जन-मन ढेलों को
अच्छे मत के पैदावार के लिए लेकिन
मुझे उम्मीद है मत नहीं
शकुन्तला पैदा होगी
सियासी दुष्यंत गंधर्व विवाह कर
उसे भूल जाएगा
बाद शकुन्तला निर्वासित हो जाएगी
भरत को जन्म देगी
दुष्यंत उसे मनाने जाएगा
घर वापसी को
पुनः भरत के राज्याभिषेक के लिए
बुद्धि-भसुर जनता
जय श्री राम बोलेगी
धर्म के आडंबरों के लिहाज से।