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राज करैए छांगुर / बुद्धिनाथ मिश्र

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पाँचो आंगुर काज करैए
राज करैए छांगुर
आर कते दिन चलत एना
पूछैए पाँचो आंगुर ।

कर्मक फल कहि-कहि कऽ
दुपहरिया मे डिबिया बारत
आनक कैल-धैल पर
कहिया धरि ई ओठगन पारत
बैसल लोक घोरत कहिया धरि
एना दूध मे माहुर !

देव-पितर द‍ऽ हमरा माथे
ल गेल बखरी अपने
लक्ष्मी औती कोन
अपाटी हाथे माला जपने

बौआ केर पौरुख तिलके धरि
भ जयता पुनि डांगर ।

कहिया धरि हमरे कनहा पर
रहत पुरान क मोटा
एक-एक क बिका रहल अछि
घर सँ थारी-लोटा

भागवत क उपदेश बौक सभ
बाँटय भरि-भरि आँजुर ।

(03 नवम्बर 2007)