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राज काज आरो नन्दिनी सेॅ हार / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’

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विश्वामित्र जब जवान होलै पिता ने गद्दी देॅ देलकै
बलशाली प्रतापी गाधिसुत प्रजा के पालन करेॅ लागलै

प्रजा सुखी, जयजयकार करै रहै चारोॅ दिशा में यश फैली गेलै
राजा शिकार प्रेमी भी होय छै विश्वामित्र भी शिकारी छेलै

एक दिन मंत्री साथें लै केॅ शिकार खेलैलेॅ ससेना चललै
चलतें-चलतें मरुधन्व देश में अइलै, राजा मंत्री सेना सब थकी गेलै

आराम करै लेॅ चाहै छेलै खोजेॅ लागलै बढ़िया ठाम
यही जंगल में मिली गेलै वशिष्ठ मुनि के सुन्दर धाम

राजा पहुँचलै मुनि के आश्रम, देखी केॅ हुनका मुनि गदगद भेलै
करलकै स्वागत गरम-गरम, मंत्री राजा सेना सब अति खुश होलै

मुनि के आश्रम में छेलै नन्दिनी गाय, जे छेलै अति प्रसिद्ध भाय
वोकरे पुण्य प्रताप सें परोसलकै विविध भोज्य लेहय मधुर मिठाय

ऐसनों आतिथ्य पाय राजाजी मन में अति हर्षित छेलै
सोचेॅ लागलै एतना जल्दी ई कैसें होलै ई कमाल नन्दिनी के छेलै

नन्दिनी कामधेनु छेलै मुनि वशिष्ठ के इच्छा पूरा करै छेलै
ई जानी केॅ राजा के मनोॅ में नन्दिनी लै के इच्छा भेलै

अधिक राजा तेॅ लोभी होय छै राज धन धान्य बढ़ावै के
विश्वामित्र के मनों में भी लोभ घुसलै कामधेनु नन्दिनी केॅ पावै के

वशिष्ठ मुनि संे अर्ज करलकै लैलिये एक अर्बुर गाय हमरोॅ
आरो धन धाम ललाम, बदला में अर्पित करियै नन्दिनी आश्रम रोॅ

ई गाय तेॅ देव अतिथि यक्षादि वास्तें रखने छी स्वागत लेली
हम्में नै दियेॅ सकौं राजा केॅ एक अर्बुर गाय के बदली

तोंय तेॅ ब्राह्मण शांत महात्मा तपस्या स्वाध्याय में रत रहै छोॅ
एकरोॅ रक्षा तोरा सें नै होत्हौं कैन्हें तोंय हठ करै छोॅ

तोंय तेॅ जानै छोॅ हम्में क्षत्रिय अस्त्रा-शस्त्रा सेना के साथ
जों बलपूर्वक लेॅ जैभ्भौं तेॅ तोरोॅ नै चलत्हौं एकोॅ हाथ

ई बात तेॅ सहिये कहै छोॅ तोंय तेॅ छेकोॅ क्षत्रिय बलवान
जे चाहोॅ से करै सकै छोॅ, तुरत लेॅ जा जों छोॅ पहलवान

एतना सुनत्हैं गोस्सा बढ़लै सेना केॅ देलकै आदेश
बलपूर्वक तेॅ हांकेॅ लागलै, डकरलै नन्दिनी भरलोॅ आवेश

मुनि के पास खाड़ी होय गेलै, जेना लागलै कि वैं कुछु पूछै छै
कल्याणी तोरोॅ क्रन्दन सुनलकै मतर मुनि क्षमाशील लाचार छै

हमरा पर लाठी डंडा बरसै छै अनाथिनी बनी केॅ डकरै छी
हम्में कैन्हें उपेक्षित भेलौं, की अपराध हम्में करने छी

नै क्षुब्ध, नै विचलित भेलै चुपचाप क्रंदन सुनत्हैं रहलै
जों बोललै तेॅ यहेॅ बोललै तोरोॅ मौज तेॅ तोंही जानल्है

तेज होय छै क्षत्रिय के बल, क्षमा होय छै ब्राह्मण के बल
तोरोॅ इचछा होतै प्रबल यहै चाहै छी हम्में केवल

जों तोंय हमरा छोड़ने लै छोॅ तेॅ बलपूर्वक लेॅ जाय के हिम्मत केकरा
हम्में तोरा छोड़ने नै छी आपनों ताकत दिखाय देॅ वोकरा

एतना सुनत्हैं नन्दिनी गोस्सैलै आँख भेलै सिनुरिया आम
बज्र समान कर्कश ध्वनि होलै, भेलै प्रलयंकर, जे छेलै ललाम

विध्वंसकारी रूप देखी केॅ सैनिक सब भागेॅ लागलै
जों घुड़ी आवै फेरु सैनिक सूरज सम चमके लागलै

रोम-रोम सेॅ अंगारे बरसे प्रहलव, द्रविण, शक, यवण
शबर, पौंड्र, किरात हूण गरजै, सिंहली, बर्बर युनानी चीन

हथियार उठाय केॅ टूटी पड़लै एक सैनिक पर पाँच आरो सात
भयंकर भगदड़ मची गेलै मतर नै करै छेलै प्राणान्तक घात

भागलोॅ जाय रहै सब सेना, भागतें-भागतें गेलै बारह कोस
कोय नै रक्षक देखी केॅ राजा विश्वामित्र केॅ तबेॅ होलै होस

वशिष्ठ के ब्रह्म तेज देखी केॅ विश्वामित्र चकित तबेॅ होलै
आपनों बलोॅ केॅ धिक्कारेॅ लागलै जब क्षत्रिय भाव सेॅ गलानि भेलै