भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राज के बात राजधानी मेॅ / कैलाश झा ‘किंकर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राज के बात राजधानी मेॅ ।
एक जजबात आग-पानी मेॅ ।।

केकरोॅ के मीत छिकै के जानै,
पीर गम्भीर छै कहानी मेॅ ।

भोर जुटलै तें सांझ टुटलै भी,
तख्त डोलै छै कूद-फानी मेॅ ।

गाँव के गाँव जरै छै लेकिन,
कुच्छू चिन्ता नै राज-रानी मेॅ ।

एक कुर्सी सेॅ मुसलसलत ‘किंकर‘
शांति रहलै नै जिन्दगानी मेॅ ।