राणा प्रताप / श्वेता राय
मेवाड़ी माटी की गाथा, कर लो याद जुबानी।
राणा के निज रण कौशल की, अद्भुत ओज़ कहानी॥
टुकड़ों में था देश बँटा तब, मन अकबर ललचाया।
आधिपत्य की चाह लिए वो,युद्धभूमि में आया॥
जाना है अब क्षेत्र समर में, राणा मन में ठाने।
माटी से बढ़ कर कब कोई, बात यही वो जाने॥
हल्दीघाटी में वीरों का, रक्त बहा बन पानी।
राणा के निज रण कौशल की, अद्धभुत ओज कहानी॥
राणा ने हुंकार भरी जब, साथ मिले सब आये।
माटी के गौरव की खातिर, सबने हाथ मिलाये॥
तेग बढ़ा फिर हाकिम खां का,मन मन्ना हरसाये।
देशप्रेम में उन्मुख सबने, चढ़ बढ़ शीश कटाये॥
एकलिंग जयकार लिए फिर, लड़ गये रजस्थानी।
राणा के निज रण कौशल की, अद्भुत ओज कहानी॥
मन से थे सब प्रबल मुखर पर, संख्या बल में थे कम।
तार हुआ था माँ का आँचल, आँखें सबकी थी नम॥
खेल देख कर नियती का ये, राणा मन घबराया।
थके हुये चेतक ने भी तो, अपना धर्म निभाया॥
छू न सका राणा को कोई, चेतक वो बलिदानी।
राणा के निज रण कौशल की, अद्भुत ओज़ कहानी॥
छोड़ दिया रण इसीलिए था, जन्मभूमि को पाना।
अपना शीश कटा कर उनको, स्वर्ग नही था जाना॥
पैदल पैदल वन में भटके,खाई रोटी सूखी।
मातृभूमि को पाना है फिर, चाह यही थी भूखी॥
कायर कहने वाले सुन लो, राणा थे अभिमानी।
मेवाड़ी माटी की गाथा, कर लो याद जुबानी॥