Last modified on 28 दिसम्बर 2022, at 00:06

रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे / फ़िरदौस ख़ान

रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
याद उस शख़्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे

ख़्वाब जब सच के समन्दर में बिखर जाते हैं
उम्र तपते हुए सहरा में सजाती है मुझे

ज़िन्दगी एक जज़ीरा है तमन्नाओं का
धूप उल्फ़त की यही बात बताती है मुझे

हर तरफ़ मेरे मसाइल के शरार बरपा हैं
जुस्तजू अब्र की हर लम्हा बुलाती है मुझे

मैं संवरने की तमन्ना में बिखरती ही गई
आंधियाँ बनके हवा ऐसे सताती है मुझे

जब से क़िस्मत का मेरी रूठ गया है सूरज
तीरगी वक़्त की हर रोज़ डराती है मुझे

आलमे-हिज्र में 'फ़िरदौस' खो गई होती
चांदनी रोज़ रफ़ाक़त की बचाती है मुझे