♦ रचनाकार: अज्ञात
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रातिए जे एलै रानु गउना करैले,
कोहवर घर में सुतल निचित ।
जकरो दुअरिया हे रानो कोसी बहे धार
सेहो कैसे सूते हे निचित ।।
सीरमा वैसल हे रानो कोसिका जगावे,
सूतल रानो उठल चेहाय ।
काँख लेल धोतिये हे रानो मुख दतमनि
माय तोहरा हँटौ हे रानो बाप तोरा बरजौ
जनु जाहे कोसी असनान ।
हँटलो न माने रानो दबलो न माने
चली गेलै कोसी असनान ।।
एक डूब लेल हे कोसी दुई डूब लेल
तीन डूब गेल भसियाय ।
जब तुहू आहे कोसिका हमरो डुबइवे,
आनव हम अस्सी मन कोदारि ।
अस्सी मन कोदरिया हे रानो,
बेरासी मन वेंट,
आगू आगू धसना धसाय ।।