भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रातें विमुख दिवस बेगाने / ओम प्रभाकर
Kavita Kosh से
रातें विमुख दिवस बेगाने
समय हमारा,
हमें न माने !
लिखें अगर बारिश में पानी
पढ़ें बाढ़ की करूण कहानी
पहले जैसे नहीं रहे अब
ऋतुओं के रंग-
रूप सुहाने ।
दिन में सूरज, रात चन्द्रमा
दिख जाता है, याद आने पर
हम गुलाब की चर्चा करते हैं
गुलाब के झर जाने पर ।
हमने, युग ने या चीज़ों ने
बदल दिए हैं
ठौर-ठिकाने ।