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रातों का तसव्वुर है उनका और चुपके-चुपके रोना है / साग़र निज़ामी
Kavita Kosh से
रातों का तसव्वुर है उनका और चुपके-चुपके रोना है ।
ऐ सुब्ह के तारे तू ही बता अन्जाम मिरा क्या होना है ।
इन नौ-रस आँखों वालों का क्या हँसना है, क्या रोना है,
बरसे हुए सच्चे मोती हैं बहता हुआ ख़ालिस सोना है ।
दिल को खोया ख़ुद भी खोए, दुनिया खोई, दीन भी खोया,
ये गुम-शुदगी है तो इक दिन ऐ दोस्त तुझे भी खोना है ।
तमईज़-ए-कमाल-ओ-नक्स उठा ये तो रौशन है दुनिया पर,
मैं चन्दन हूँ तू कुन्दन है मैं मिट्टी हूँ तू सोना है ।
तू ये न समझ लिल्लाह कि है तस्कीन तिरे दीवानों को,
वहशत में हमारा हँस पड़ना दर-अस्ल हमारा रोना है ।
मातम है मेरी आवाज़ शिकस्त-ए-साज-ए-दिल-ए-सद-पारा का
’सागर’ मेरा नग़्मा भी दीपक के सुरों में रोना है ।