भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रातों के कुहासों जुगनू सा दिया ले के / पूजा श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
रातों के कुहासों में जुगनू सा दिया ले के
चौखट पे चले आये हाथों में हिया ले के
बिजली भी गिराई तो तूफां भी समेटा है
हम औरतें चलती हैं आँचल में दया ले के
लिपटी थी सलीके से सादे से दुपट्टे में
वो कितना निखर आई आँखों में हया ले के
दौलत भी हसरतें भी कब्ज़े में नहीं होंगी
जाओगे तुम जहाँ से अपना ही किया ले के
यूँ भी नहीं है आसाँ मेरी खुदी भुलाना
लौटूंगी यहाँ फिर मैं किरदार नया ले के