रातों को मुझको जगाता है कौन
रह रह के मुझको उठाता है कौन
ख्बाबों की चिलमन में छुपते छुपाते
नींदों को सुंदर बनाता है कौन
यादों का पहरा मेरी नींद पर है
पहरो ही मुझको रूलाता है कौन
खिड़की से देखूँ मैं झिलमिल गगन को
करके इशारे बुलाता है कौन
चुप-चुप समा है, कि गुप-चुप हवा है
धीमे से बंसी बजाता है कौन
तारों से टपटप नमी है टपकती
शबनम में उर्मिल नहाता है कौन?