भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात-2 / सिद्धेश्वर सिंह
Kavita Kosh से
यह रात है
कुछ विगत
कुछ आगत
यह रात है
साँझ की स्मृति
सुबह का सहज स्वागत
यह रात है
कुछ कल्मष
कुछ उजास
यह रात है
राग-विराग मिलन-वनवास
यह रात है
कुछ नहीं बस रात
यह रात है
ख़ुद से ख़ुद की कोई बात
यह रात है
आधी बात आधा मौन
यह रात है
आधा हम
आधा न जाने कौन !