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रात अपने ख़्वाब की कीमत का अँदाजा हुआ / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
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रात अपने ख़्वाब की कीमत का अँदाजा हुआ
ये सितारा नींद की तहज़ीब से पैदा हुआ
ज़ेहन की ज़रखेज़ मिट्टी से नए चेहरे उगे
जो मेरी यादों में ज़िंदा है सरासीमा हुआ
मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तजवीज़ थी
सिर्फ़ देखा था उसे उस का बदन मैला हुआ
वो कोई ख़ुश-बू है मेरी साँस में बहती हुई
मैं कोई आँसू हूँ उस की रूह में गिरता हुआ
उस के मिलने और बिछड़ जाने का मंज़र एक है
कौन इतने फ़ासलों में बे-हिजाब ऐसा हुआ