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रात अभी शेष है / अरविन्द कुमार खेड़े

यह एक उदास शाम है
नदी किनारे बैठा
अस्ताचल को निहार रहा हूँ
विलीन ही रही है लालिमा धीरे-धीरे
क्षितिज धुँधलके में गहराता जा रहा है
इधर लहरें मौन हैं
जल प्रवाह स्थिर-सा है
काँटे डालकर लौट रहे हैं मछुआरे

पिता मछुआरा
अपने मछुआरे बेटे को
बता रहा है
अलसुबह आना हैं उन्हें
काँटे में फँसी मछलियों को
जल्दी निकालना होगा
बेचारी…तपड़ती रही होंगी रातभर

लहरों में हलचल है
जल प्रवाह मचल उठा है
मैं लौट पड़ा हूँ
मछुआरों के पीछे-पीछे
रात अभी शेष है ।