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रात ऐसे गुज़ारता है कोई / शोभा कुक्कल

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रात ऐसे गुज़ारता है कोई
चांद तारे निहारता है कोई

ऐ मेरे श्याम ऐ मिरे काहन
आ कि तुझको पुकारता है कोई

कोई बेमौत मर रहा है कहीं
अपनी ज़ुल्फें संवारता है कोई

बंद आंखों से काम लेता है
यूँ किसी को निहारता है कोई

वो हो मंज़ूर या कि न मंज़ूर
अर्ज़ अपनी गुज़ारता है कोई

जीत जाये कोई बस इस ख़ातिर
बाज़ीए-इश्क़ हारता है कोई।