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रात कटी गिन तारा तारा / शिव कुमार बटालवी
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रात कटी गिन तारा तारा
हुआ है दिल का दर्द सहारा
रात फुँका मिरा सीना ऐसा
पार अर्श के गया शरारा
आँखें हो गईं आँसू आँसू
दिल का शीशा पारा-पारा
अब तो मेरे दो ही साथी
इक आह और इक आँसू खारा
मैं बुझते दीपक का धुआँ हूँ
कैसे करूँ तिरा रौशन द्वारा
मरना चाहा मौत न आई
मौत भी मुझ को दे गई लारा
छोड़ न मेरी नब्ज़ मसीहा
बाद में ग़म का कौन सहारा
मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : आकाश ’अर्श’