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रात कान में आकर चान्द मुझसे यूँ बोला / कांतिमोहन 'सोज़'

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रात कान में आकर चान्द मुझसे यूँ बोला ।
मैं निपट अकेला हूँ दोस्त जागते रहना ।

हर थके मुसाफ़िर को लोरियाँ सुनाता हूँ
क़ुमक़ुमों से मैं सबके ख़्वाब जगमगाता हूँ
सबको याद रखता हूँ ख़ुद को भूल जाता हूँ ।
मैं निचाट तनहा हूँ दोस्त जागते रहना ।

रात मुझसे यूँ बोला ख़ुदफ़रेब आईना
दूध का जला है तू छाछ फूँककर पीना
जीभ जैसे दाँतों में जग में इस तरह जीना
सबको ये सिखाता हूँ ख़ुद को भूल जाता हूँ ।

चान्द हो कि आईना मेरे यार हैं दोनों
दर्दमन्द हैं दोनों ग़मगुसार हैं दोनों
सारे ख़स्ताहालों के पैरोकार हैं दोनो
उनका दर्द जीता हूँ अपना भूल जाता हूँ ।।

12-9-1996