भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात का अंतिम प्रहर / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
रात का अंतिम प्रहर
और
कुछ शब्द
कल की उम्मीदों से भरे हुए
कुछ शब्द अलसाए
कुछ थके-थके से
कुछ धुले-धुले
कुछ गीले