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रात का जागना / ‘हरिऔध’

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जी भरा है, आँखें हैं कडुआ रही।
सिर में है कुछ धामक नींद है आ रही।
उचित नहीं है बहुत रात तक जागना।
देह टूटकर है यह हमें बता रही।1।

सुर बाजों में मीठापन है कम नहीं।
जहाँ वर गला है मीठापन है वहीं।
नाच रंग में मीठेपन का रंग है।
पर मीठी है नींद इन सबों से कहीं।2।

न्यारा रस कितने ग्रन्थों में है भरा।
किसे नहिं मिला सत संगति में सुख धारा।
काम काज की धुन भी है प्यारी बड़ी।
पर संयम के बिना रहा कब मुख हरा।3।

मनको है अपना लेती कितनी कला।
नाटक-चेटक पर किसका नहिं जी चला।
खेल तमाशे ललचाते किसको नहीं।
पर निरोग तन रहना है सबसे भला।4।