भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात का नाम सवेरा ही सही / 'हफ़ीज़' बनारसी
Kavita Kosh से
रात का नाम सवेरा ही सही
आप कहते हैं तो ऐसा ही सही
क्या बुराई है अगर देख लें हम
ज़िन्दगी एक तमाशा ही सही
क़त्ल कर देगी उसे भी दुनिया
अपने युग का वह मसीहा ही सही
तुम तो मौसम की तरह मत बदलो
अब ज़माने का ये शेवा ही सही
मेरा क़द आप से ऊँचा है बहुत
मैं 'हफ़ीज़' आप का साया ही सही