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रात का फूल / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
					
										
					
					एक फूल 
रात की किसी अन्धी गाँठ में 
घाव की तरह खुला है 
किसी बंजर प्रदेश में 
और उसके रंग में जादू है 
टूटती हुई गृहस्थी, 
छूटती हुई नौकरी, अपमान और असुरक्षा 
के तनाव में टूटते हुए मस्तिष्क से 
निकली है कोई कविता 
जिसके क्रोध और दुख और घृणा में 
कला है 
ख़ाली बरतनों, दवाइयों की शीशियों 
और मृत्यु की गहरी गन्ध से भरे 
कमरे में 
हँसता है वह ढाई साल का बच्चा 
और उसके दूधिया दाँतों में 
ग़ज़ब की चमक है !
	
	