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रात की आँखों में / कुलवंत सिंह
Kavita Kosh से
रात की आँखों में आंसू आज फिर हैं बह रहे.
टूट कर दो दिल है लगता आज फिर दुख सह रहे.
आशिकों को आज फिर से कर रही दुनिया जुदा,
चांद धरती आसमाँ उनकी कहानी कह रहे.
बददुआ निकली तड़प के जब हुए बरबाद दिल,
दौर-ए-महशर देख लो मजबूत घर भी ढ़ह रहे. (महशर = प्रलय)
कितना समझाया कहीं तूँ और डेरा डाल ले,
मेरा घर अपना समझ कर दुख सदा से रह रहे.
गम नही था आँख मेरी कितने आंसू आ गये,
पोंछने आँसू थे जिनको दर्द देते वह रहे.