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रात की तारिका मुंह छिपाने लगी / रंजना वर्मा

रात की तारिका मुँह छिपाने लगी।
प्रात की रश्मि है झिलमिलाने लगी॥

रात के फूल सारे छिपे लाज से
प्रात की हर कली खिलखिलाने लगी॥

तितलियों ने चुनर प्यार की ओढ़ ली
बन परी ओस में है नहाने लगी॥

उड़ रहे पंछियों का गमन देख कर
पंख नन्ही चिड़ी फड़फड़ाने लगी॥

नाच उट्ठा शिखी कोकिला कूजती
है चकोरी पिया को बुलाने लगी॥

है सुहानी पवन मनचली हो गयी
खुशबुओं के खजाने लुटाने लगी॥

चाँद को तरुवरों ने सहारा दिया
रौशनी है धरा को सजाने लगी॥