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रात के अंधेरे में गर्भवती होने वाली एक नदी / मणिका दास
Kavita Kosh से
बहकर आती है एक शिला को तोड़कर
रात के अँधेरे में गर्भवती होने वाली एक नदी
विदा का गीत गाते-गाते चली जाती हैं
उजली पीली मछलियाँ
शोक से झुक जाते हैं
दो प्राचीन पीपल
और एक जाल बुन पाने में नाकाम होने पर
छटपटाती हुई पड़ी रहती हूँ मैं
पीपल के दो पेड़ों की बग़ल में
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार