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रात के नौ का समय था / रुस्तम
Kavita Kosh से
रात के नौ का समय था।
शहर बत्तियों से चमचमा रहा था।
गाड़ियाँ आ रही थीं, गाड़ियाँ जा रही थीं,
गाड़ियाँ रुक रही थीं, थम रही थीं,
चिल्ल-पौं मचा रही थीं।
सड़कों पर
उनमें से
निकलने वाला धुआँ
भरा था।
और मैंने देखा कि
इस सब के बीचों-बीच
ऐन चौराहे पर
अकेला एक जानवर खड़ा था —
मनुष्यों की
भद्दी दुनिया में
सहमा हुआ एक जानवर
जिसकी आँखों में
रह-रहकर
रोशनी पड़ रही थी
और उनमें
ज़रा भी
चमक नहीं थी।