भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात के नौ बजे हैं / नाज़िम हिक़मत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: नाज़िम हिक़मत  » रात के नौ बजे हैं

चौराहे पर घंटा बज उठा है
अब सेल का दरवाज़ा बन्द हो जाएगा।
इस बार जेल में कुछ ज़्यादा ही दिन कटे हैं ...
आठ साल!

बचे रहने के भीतर रहती है
बहुत सारी आशाएँ, प्रियतमा
तुम्हें प्यार करने की इच्छा में ही एकाग्र है
यह बचे रहना।

कितनी मधुर, कितनी आशाओं से रँगी है तुम्हारी स्मृति....
लेकिन अब मैं आशाओं से संतुष्ट नहीं
मैं अब सुनना नहीं चाहता गीत
अब मैं ख़ुद के गीत गाऊँगा।

हमारा बीमार बेटा अब भी बिस्तर पर है
उसका पिता जेल में
तुम्हारा भयाक्रांत चेहरा
तुम्हारे हाथों में ढुलक गया है।

एक इन्सान और हमारी यह पृथ्वी
एक ही सुई की नोक पर खड़े हैं।
इन्सान एक दिन
इन्सान को पहुँचा ही देगा
बुरे समय से अच्छे समय में

हमारा बेटा स्वस्थ हो जाएगा
उसका पिता रिहा होगा जेल से
तुम्हारी सुनहरी आँखों से हँसी छलक पड़ेगी।
एक इन्सान और हमारी यह पृथ्वी
एक ही सुई की नोक पर खड़े हैं।


अंग्रेज़ी से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी