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रात के ये काफ़िले अपनी सहर को जायेंगे / पूजा श्रीवास्तव
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रात के ये काफिले अपनी सहर को जायेंगे
शाम जब होने लगेगी पंछी घर को जायेंगे
सो रहे हैं ख़त पुराने राज़ सीने में लिए
खुल गयी बेवक्त नींदें तो कहर को जायेंगे
मंजिलें ही मंजिलें हैं गर तुम्हारी आँखों में
हम भटकते ख्वाब लेके रहगुज़र को जायेंगे
बेजुबां हैं लफ्ज़ फिर भी बेईमाँ होते नहीं
उठ गए हैं दिल से तो दिल पे असर को जायेंगे
गर समंदर हम नहीं गजलों में लिक्खेंगे तो फिर
आग दीवाने बुझाने ये किधर को जायेंगे