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रात के सपना छूट गइल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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रात के सपना छूट गइल
छूट गइल रे छूट गइल
बंधन सब अब टूट गइल
टूट गइल रे टूट गइल
अब प्राण के परदा ना रहल
हम निकल के बाहर आ गइलीं
हमरा हृदय कमल के
सब पँखुरी फूट गइल
फूट गइल रे फूट गइल
दरवाजा हमार तूर के
जब तूं खुदे आके
हमरा दुआरी ठाढ़ हो गइल,
तब हमरा नैन-जल मेभें
हमरा हृदय के बहे द
आ अपना चरनन में लोटाए द
आकाश से भोर के अँजोर
हमरा ओर हाथ बढ़ा रहल बा
जेल के फाटक टूट गइल
टूट गइल रे टूट गइल
जै जैकार के सोर मच गइल।
मच गइल रे मच गइल।