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रात के साए में / शैलप्रिया
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रात के साए में
कुचला फन मेरा
दर्द से भींग जाता है
चर्म के छिद्रों से
तेज़ाब की गंध आती है
क्योंकि मन का जलता कोना
निःश्वास लेता है
आज पुनः रोया है मन
फैलता है एक तीख़ापन
अरसों बाद
पुनः मँडराया है
निःश्वास
जो मेरा अपना है
व्यथा
अब आग-सी लहराती है
और कभी बर्फ़ीली ठंड-सी
डंक मारती है
चुभता है जो मन में
उसे मौन सहन करती हूँ
क्योंकि वह अपना है ।