रात का बहुत उदास है आकाश
घटाओं ने उसे घेर रखा है पूरी तरह ।
यह न धमकी है न ही कोई सलाह
बस, उल्लासहीन निष्प्राण एक सपना है ।
आग्नेय उषा अकेली-अकेली
प्रज्ज्वलित होती है बारी-बारी से
गूँगे-बहरे दैत्यों-सी
बतियाती हैं वे एक-दूसरे से ।
पूर्व-निर्धारित संकेत की तरह
अचानक चमक उठती है आकाश-रेखा,
अन्धकार में से जल्दी-जल्दी
बाहर आते हैं खेत और दूरस्थ वन ।
पुनः सब कुछ पड़ जाता है आलोकहीन,
ख़ामोशी छा जाती है सम्वेदनशील अन्धकार में
रहस्यपूर्ण सब कार्य जैसे
सम्पन्न होते हों ऊँचाइयों में ।