रात घिर चुकी थी
या घिरने ही वाली थी।
मैं दफ़्तर से लौट रहा था
और अब शहर के किनारे पर था
और पुल पर चढ़ रहा था।
मैं उसके मध्य तक ही पहुँचा था
कि एक औरत ने
गर्दन मोड़कर
मेरी ओर देखा।
वह पुल की रेलिंग पकड़े खड़ी थी।
मैं क्षण भर को ही रुका
जब मैंने भी उसकी ओर देखा।
फिर मैं आगे बढ़ गया।
अपनी पीठ के पीछे, ज़रा बायीं ओर
एक आवाज़ मैंने सुनी।
मैं वापिस दौड़ा।
पुल
सूना और अँधेरा था।
नदी शान्त थी।