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रात चांदनी चूनर ओढ़े (शरद गीत) / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
मौसम की अंगड़ाई है
और हवा ने रुख बदला है
कुदरत ने नवगीत सुनाये
कलियाँ और किसलय मुस्काये
डोली उठी घटाओं की भी
पेड़ों पर पत्ते अंखुआयें
घायल करने वाली गर्मी
तपिश की हुई विदाई है
और हवा ने रुख बदला है
रात चांदनी चूनर ओढ़े
छत पर धरती चरण सलोने
गुनगुन करती, छमछम करती
झांझर बजती हौले हौले
लजा लजा चूनर सरकाती
धीरे से मुस्काई है
और हवा ने रुख बदला है
रात चांदनी चूनर ओढ़े
छत पर धरती चरण सलोने
गुनगुन करती, छमछम करती
झांझर बजती हौले हौले
लजा लजा चूनर सरकाती
धीरे से मुस्काई है
और हवा ने रुख बदला है
मंद पवन है गले लगाती
दग्ध बदन को सहला जाती
गा गा मीठे गीत प्रेम के
युग्लों के मन प्रीत जगाती
समरसता वाली रुत प्यारी
शरद सुहानी आई है।
और हवा ने रुख बदला है