रात जलकर जो अंधेरों से लड़ा होता है / सूरज राय 'सूरज'
रात जलकर जो अंधेरों से लड़ा होता है।
वो दिया घर ही की फूंकों से बुझा होता है॥
हालते-सच है क्या बतलाएँ ये शहरे-बद में
एक-एक पल यहाँ जीने की सज़ा होता है॥
फ़ैसला उनका मुहब्बत को घुमा दो नंगा
जो ये कहते हैं मुहब्बत में ख़ुदा होता है॥
ख़ुद को खो देते हैं जब तज्रबों के जंगल में
तब कहीं जाके हमें ख़ुद का पता होता है॥
एक जोकर की हँसी पोस्टमार्टम में खुली
दर्द का देवता अश्कों से बंधा होता है॥
बात इतनी-सी हक़ीमो की किताबों में नहीं
दर्द जब हद से गुज़र जाए दवा होता है॥
प्यार करता है जो हो सकता नहीं लावारिस
रूह की तह में कोई नाम लिखा होता है॥
वक़्त ने वक़्त की चुप्पी को खंगाला जब भी
एक-एक पर्त में इक राज़ छुपा होता है॥
आग को तुझसे मुहब्बत है मुहब्बत "सूरज"
क्या कभी जिस्म से साया भी जुदा होता है?