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रात थम-थम के ढल रही होगी / शलभ श्रीराम सिंह

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रात थम-थम के ढल रही होगी
याद पहलू बदल रही होगी

ना-उम्मीदी सम्हल रही होगी
आग पानी पे चल रही होगी

सब्र का उसके इम्तहाँ होगा
सिर्फ़ तस्वीर जल रही होगी

दिल के दहलीज़ पे जो ठहरी है
शाम टाले न टल रही होगी

ऐ शलभ! एक बा-वकार वफ़ा
ग़म से ख़ुशियाँ बदल रही होगी
 

रचनाकाल : 4 फ़रवरी 1982

शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।