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रात थी बदली घनी चन्दा भी अपने घर गया / रंजना वर्मा

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रात थी बदली घनी चन्दा भी अपने घर गया
छा गया इतना अँधेरा मन बिचारा डर गया

बस रहे रहमत खुदा की होगा जो सब ठीक ही
वक्त जो गुजरा हमारा वो भी तो बेहतर गया
 
साथ होता हमसफ़र का आखिरी दम तक मगर
राह में हम को अचानक छोड़ कर दिलवर गया
 
थे हिफ़ाजत कर रहे जिस की हमारे नौजवां
बेरहम वो ही तो उन को मारता पत्थर गया

थी तमन्ना प्यार से बढ़ कर गले मिलते मगर
दोस्त कह कर वो छुपाये हाथ में नश्तर गया

अब सुबह होगी अँधेरी रात ये ढल जायेगी
ख़्वाब देखा जब कभी वो टूट यूँ अक्सर गया

वो बहुत चालाक निकले कत्ल तो खुद कर गये
है गज़ब इल्ज़ाम जिस का दूसरे के सर गया