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रात फिर आएगी, फिर ज़ेहन के दरवाज़े पर / 'ज़फ़र' इक़बाल
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रात फिर आएगी, फिर ज़ेहन के दरवाज़े पर
कोई मेहँदी में रचे हाथ से दस्तक देगा
धूप है, साया नहीं आँख के सहरा में कहीं
दीद का काफिला आया तो कहाँ ठहरेगा
आहट आते ही निगाहों को झुका लो कि उसे
देख लोगे तो लिपटने को भी जी चाहेगा