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रात बारिश की मुहब्बत दोस्तो / सूरज राय 'सूरज'

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रात बारिश की मुहब्बत दोस्तो।
खुल के रोई कल मेरी छत दोस्तो॥

टूटना दिन भर सिमटना रात भर
हो गई है एक आदत दोस्तो॥

बेगुनाह हूँ, ये कहा मुंसिफ़ से, बस
बढ़ गई मेरी हिरासत दोस्तो॥

उस जुनूनी का तो हो सकता नहीं
किस भगतसिंग का ये भारत दोस्तो॥

हाथ सर पे, "मैं हूँ न" ये तीन लफ़्ज़
ये है मेरे सर की कीमत दोस्तो॥

क़ब्र ही मेरी पलट के देख लो
अब भला कैसी अदावत दोस्तो॥

अश्क से तर काग़ज़ों की कतरनें
मेरी अनपढ़ माँ के हैं ख़त दोस्तो॥

अब यक़ीं का क़त्ल भी देखेगा वो
जा रहा है जो अदालत दोस्तो॥

इक दिये ने दे दी "सूरज" को शिक़स्त
बस दुआओं की बदौलत दोस्तो॥