रात बीतेगी / महेन्द्र भटनागर
अँधेरा....
रात गहरी है,
रात बहरी है !
बहुत समझाया कि
सो जा !
रे मन
थके ग़मगीन मन
ज़िन्दगी के खेल में हारे हुए
दुर्भाग्य के मारे हुए
रे दरिद्र मन
सो जा !
रात सोने के लिए है
सपने सँजोने के लिए है,
कुछ क्षणों को
अस्तित्व खोने के लिए है,
तारिकाओं से भरी यह रात
परियों-साथ सोने के लिए है !
सो !
दर्द है,
और सूनी रात बेहद सर्द है !
जीवन नहीं अपना रहा,
अब न बाक़ी देखना सपना रहा !
रात...
जगने के लिए है !
..... बेचैनियों की भट्ठियों में
फिर-फिर सुलगने के लिए है !
रात....
गहरी रात
बहरी रात
हमने बिता दी
जग कर बिता दी !
कल फिर यही होगा
अँधेरा आयगा !
खामोश
धीरे, बड़े धीरे
कफ़न-सा
फिर अँधेरा आयगा !
रे मन
जगने के लिए
चुपचाप
आँखें बन्द कर लेना,
भीतर सुलगने के लिए
ज़िन्दगी पर राख धर लेना !
रात
काली रात
बीतेगी .... बीतेगी !