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रात मरै छै गरमी में / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
की प्रेम-घृणा या विरह-मिलन के बात करै छै गरमी में
उफ् उफ् करते, करवट लेतै, रात मरै छै गरमी में
रात निहारी दिन बीतै छै
साँझ-भोर के आकर्षण,
नेह, प्रेम के सपना, सपना
कहाँ मेघ, केन्हों दर्शन,
आकांक्षा के कोंपल झुलसी हाय जरै छै गरमी में
उफ उफ करते, करवट लेते, रात मरै छै गरमी में।
कहाँ छै बचलोॅ बरगद, पीपल कहाँ कहाँ गोचर मैदान
जीव जीव के हाय शाप से गरमी के की होतै ज्ञान,
आपनोॅ दुश्मन आप बनी के तृषित तरै छै गरमी में
उफ उफ करते करवट लेते रात मरै छै गरमी में।
सिमटै के इच्छा न रहलै
बिखरै के हर रूप विधान,
सौंसे सौंसे गाँव बनै छै
चिता भूमि रं ई शमसान,
लोक-लाज नाता रिश्ता श्रृंगार हरै छै गरमी में
उफ उफ करते करवट लेते रात मरै छै गरमी में।