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रात में बोट क्लब / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
रुकी हुई नावें
जैसे लहरों ने
बेतरतीबी से उतार फेंकी
अपनी जूतियाँ
और समा गईं तलघर में
उनकी नींद पर
मछलियों का पहरा है
बंद है पानी का दरवाजा
चाँद उस पर लटका है
ताले की तरह