Last modified on 28 मई 2010, at 21:06

रात सुन ली थी तान तुम्हारी / गुलाब खंडेलवाल


रात सुन ली थी तान तुम्हारी
अश्रु-सजल देखी थीं वे  दो आँखें प्यारी-प्यारी
 
पीछे उड़ता हुआ समय में
पहुँच गया मैं उस नव वय में
जब तुमने पहले परिचय में
सुध-बुध हर ली सारी
 
कितनी भी हो प्रीति परायी
मन की लौ बुझती न बुझायी
फिर से प्राणों में लहरायी
केसर की- सी क्यारी  
 
क्या वह मेरा चिर-संयम था
या कि आत्म-गरिमा का भ्रम था
सम्मुख जो घिर आया तम था
रोके राह हमारी

रात सुन ली थी तान तुम्हारी
अश्रु-सजल देखी थीं वे  दो आँखें प्यारी-प्यारी