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रात हुई इस राष्ट्र की / देवी प्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
जो भी सोचेगा अलग हम लेंगे संज्ञान
जेएनयू का तोड़ दो मेधामय अभिमान
रात हुई इस राष्ट्र की जैसे किया मसान
आस-पास हैं घूमते नव नाजी बलवान
अधिनायक की आँख में हत्या का वीरान
इस विदर्भ में झूलते लुटते हुए किसान
हर कोने से गूँजता फ़ासिस्टी जयगान
उस कोने बजरंग है, पतंग लिए सलमान
इस ताक़त के सामने काँप गया ईमान
दावत में दिखते रहे पीके नर्वस खान
किस हक़ से हो जाँचते बार - बार ईमान
हर भाषा में पूछते कितने पाकिस्तान
साँस भरी पानी पिया खुसरो लुटा मकान
ढूँढ़ रहे इस रेत में अपना नख़लिस्तान