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रात - दो / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
अंधारै रो बैंक बैलेंस !
जकै नै बो
सूरज ढल्यां
मिलावै
अर
देखण खातर
दीया सा
छोटा-छोटा
तारा चसावै।