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रात / केशव
Kavita Kosh से
					
										
					
					लंबी 
सवालों से जगमगाती 
रात 
     चलती रही 
देह से देह तक 
सड़क से सड़क तक 
चौराहे पर पहुँच 
अँधेरे को गाड़ दिया 
उसने खम्भे की तरह 
       बीचों–बीच
अब 
उसके पास बचे थे  सवाल 
और सवाल 
जवान हो चुके थे 
उन्हें गोद से उतार 
उनकी उँगली थाम ली उसने 
और चलती रही 
जंगल से जंगल तक 
पहाड़ से पहाड़ तक 
अब बचा था एक सवाल 
सिर्फ एक सवाल 
और सवाल का चेहरा 
भर चुका था झुर्रियोँ से 
जिसे छड़ी की तरह टेकती 
रास्ता टटोलती 
चलती रही 
रात 
    अँधेरे से अँधेरे तक
	
	