भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात / के० शिवारेड्डी
Kavita Kosh से
|
आँखें मौजूद हैं
देखो मत ।
औज़ार भी मौजूद है
उठो मत ।
पाँव की सेवा करो
लोग भी मौजूद हैं
लेकिन चीज़ों से भी बदतर ।
मूल तेलुगु से अनुवाद : संतोष अलेक्स