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रात / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
लिपी-पुती ढिगाई रात
चौक पुरी चित्र लिखी
कलश धरे खूँट पर
चन्दा की मूरत पूजा की वेदी पर
मंडोवा सजा नखत प्रसूनों से
नीले चद्दर पर लकलकाते जरी के तार ।
बिदाते बसन्त में बिखरता
पलाश का पराग
सरसराती हवा के झोंकों में
बिजन डुलाते पत्तों पर
चिलकती है चाँदनी,
नकुओं में रतरनियाँ की महक मादल नकेल
वीराने की इस बेबसी में
निर्द्वन्द्व पड़ती है
और चौकड़ी भरते हैं सेमरी बादल,
कामनाएँ ज्यों अपूरन,
चेतना के शीशे पर धुँधला गई हैं ।