भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छैलभंवर चांद
पखवाड़ै खातर गया परदेस
आ देख
छिनाळ रात पासो फेंक्यो
भोळी सिंझ्यां
बीं री पाक्यां में आय
नूंत लाई सूरज नै समंदर में
पण हाथ कोनी आयो सूरज
अबै रात बैठी रोवै
अंधारै में !