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रात / सूर्यकुमार पांडेय
Kavita Kosh से
लगती बड़ी निराली रात,
कौवे जैसी काली रात।
दूध नहीं डाला जिसमें,
एक चाय की प्याली रात।
झींगुर साज बजाते हैं,
गाती जब कव्वाली रात।
फल की तरह लदे तारे,
है बरगद की डाली रात।
दीये जले जिसमें ढेरों,
पूजा वाली थाली रात।
सोने की पुड़िया रखती,
खेल-तमाशों वाली रात।