भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राधारानी देतीं प्रिय को पल-पल / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राधारानी देतीं प्रिय को पल-पल नया-नया आनन्द।
उस आनँद से शत-शतगुण आनन्द प्राप्त करतीं स्वच्छन्द॥
तन-मन-धन-जीवन-मति-गति, सब वस्तु, कर्म-‌आचार-विचार।
प्रियतम के सब सहज समर्पित, नित सुख-सेवा-रत, अविकार॥
किंतु न रहता उन्हें कभी भी अपने देनेका कुछ भान।
कभी न आता उनके मनमें निज कृतिका किंचित्‌‌ अभिमान॥
रागरहित श्रृंगार विलक्षण, भोगरहित नित भोग महान।
प्रियतम-सुख हित दैन्ययुक्त सब हैं, अभिमान-रहित अतिमान॥
निज सुख-वाछा-विरहित ममता, नित विरागमय प्रिय-‌आसक्ति।
भोजन-पान स्वादविरहित निज, प्रिय-सुख-हेतु मुक्त अनुरक्ति॥
मलिन काम-तम का न कभी हो पाता उनमें लेश प्रवेश।
रहता नित्य प्रकाशित शुचितम, दिव्य-ज्योतिमय प्रेम दिनेश॥
संयमपूर्ण सहज चलते नित देह-गेहके सब व्यवहार।
वे भी सब प्रिय-सुख-साधन ही होते, निज को सदा बिसार॥
अतुलनीय सौन्दर्य-शील, सद्‌‌गुण, स्वभाव, सद्‌‌भाव, सुरूप।
मेरी राधा के ये कृष्णाकर्षी पावन दिव्य अनूप॥
नित्य सेविका वे प्रियतम की, विनय-विनम्र सहज मन दीन।
कहतीं सदा, मानतीं निज को दुर्लभ श्याम-प्रेम-धन-हीन॥
किंतु श्याम नित रीझे रहते, करते नित नूतन मनुहार।
परमाराध्य मानते निर्मल मन से प्रियतम नन्दकुमार॥