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राधिके! तुम सलिल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
राधिके! तुम सलिल, हौं मीन।
रहैं कैसें एक छिन हूँ प्रान तुम बिन दीन॥
रहैं कैसें अग्रि जीवित दहन-शक्ति-विहीन।
रहैं सूरज-चाँद कैसे प्रभा-आभा-छीन॥
सक्ति-भगवा बिना भगवान जीवन-हीन।
त्यों सरस यह स्याम-जीवन राधिका-आधीन॥